Thursday, May 27, 2010

Aaklan Do Dashak Ka Ho

आकलन दो दशक का हो -
एक साल पूरा होने पर सरकार के कार्यकाज का आकलन करने की परंपरा एक लम्बे समय से चली आ रही है विशेष रूप से गठबंधन सरकारों के सत्तारुढ होने के बाद से इस परंपरा को और बल मिला है इस लिहाज से यूपीए के दूसरे चक्र के पहले साल के कार्यो और उपलब्धियों के आकलन के साथ प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहनसिंह की सोच और कार्यों का भी आकलन , मीडिया सहित सभी क्षेत्रो में किया जा रहा है पर, वर्ष 2010 यूपीए सरकार के दूसरे चरण के पहले वर्ष का ही अंत नहीं है, यह देश में लागू हुए आर्थिक उदारीकरण और सुधारों के बीसवें वर्ष का अंत भी है संयोग से आज जिन मनमोहनसिंह के कार्यों का आकलन प्रधानमंत्री के रूप में सभी लोग कर रहे हैं, उसी व्यक्ति ने 1991 में वित्तमंत्री रहते हुए वर्तमान आर्थिक सुधारों की शुरुवात देश में की थी इतिहास में मनमोहनसिहं को इसका श्रेय हमेशा मिलेगा कि 1995 से 2004 तक कांग्रेस और मनमोहनसिहं के सत्ता से दूर रहने के बावजूद , बीच में आयी सरकारों के सामने आर्थिक सुधारों के उसी रास्ते पर चलने के अलावा कोई चारा नहीं था ,जिन्हे 1991 में मनमोहनसिहं तय कर चुके थे इसलिये आकलन कांग्रेस या उस हेतु मनमोहनसिहं की उस सोच का भी होना है, जिसने भारत के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक, सांस्क्रतिक जीवन में खलबली मचा कर रखी है
उदारीकरण वायदे और वास्तविकता-
वर्ष 1991 में उदारीकरण के रास्ते पर जाने के बाद 8वीं पंचवर्षीय योजना (92-97) में रोजगार के अवसरों को बढाने, जनसंख्या को नियंत्रित करने, पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौम बनाने , सभी को साफ पेय जल उपलब्ध कराने और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को सभी तक पहुंचाने के लक्ष्य रखे गये थे पर, दो दशक के बाद स्थिति यह है कि यूएनडीपी की वर्ष 2009 की मानव विकास रिपोर्ट में , 182 देशो में भारत का स्थान 134वा है भारत अपने पूर्व स्थान 126 से नीचे खिसक गया है जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 128वा , व्यस्क सक्षरता दर में 120वा , प्रसव दौरान महिलाओं के मरने कि दर में 153वा , महिला व्यस्क साक्षरता में 123वा ,40 वर्ष की आयु तक जीवन प्रत्याशा में 105वा , 5 वर्ष तक आयु के बच्चों के अंडरवेट के मामले में 137वा , साफ पीने के पानी की उप्लब्धता में 76वा स्थान है इन दो दशकों की एक और बडी उपलब्धि देश में बडा भ्रष्टाचार है मनमोहनसिहं के वित्तमंत्री रहते हुए ही तात्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव को लपेटते हुए जो हर्षद मेहता कांड हुआ , उसके बाद से देश में भ्र्ष्टाचार का पौधा लगातार पलता फूलता रहा है आज विश्व में भ्रष्ट देशो में भारत का स्थान 85वा और एशिया में चौथा है
पिछले दो दशक के दौरान लाखों किसानो ने आत्महत्या की हैं कारण स्पष्ट है उदारवादी नीतियों के चलते किसानो की मेहनत वायदा कारोबार के तहत सट्टाबाजार के हवाले कर दी गयी सरकार की तरफ से दी जाने वाली सबसीडी विश्व व्यापार संगठन और बहुराष्टीय क्म्पनियों के दबाव में लगातार कम की गयी और जो दी भी गयी ,उसका फायदा बडे किसानो तथा फार्मिंग करने वालों तक सीमित रहा अपने देश की फर्टिलाइजर उत्पादक इकाइयों को बंद करके किसानो को मोंसेंटो ,वालमार्ट ,डेनियल्स मिडलेंड जैसी कम्पनियों के रसायनो , खादों तथा बीजों के इस्तेमाल के लिये मजबूर करने का नतीजा यह निकला है कि आज पंजाब और हरयाणा जैसे उन्नत राज्यो में खेतिहर भूमि की उर्वरा क्षमता समाप्त हो चुकी है मिट्टी धूल में परिवर्तित हो रही है इन राज्यों के किसान आज मुश्किलों का सामना कर रहे हैं पंजाब स्टेट कौंसिल फोर साइंस एण्ड टेकनालाजी की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में खेती करना अब फायदेमंद तो है ही नहीं मुश्किल भी हो गया है पंजाब की ही एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार रसायनों के बेतहाशा उपयोग से पंजाब में कैंसर के मरीज उन क्षेत्रों की तुलना में बढे हैं , जहाँ खेती के तरीके अभी बद्ले नहीं हैं
दो दशक पहले जो सब्जबाग दिखाने की कोशिश की ग्यी थी , वह धूसरित हो चुकी है उदारीकरण आज और भी गम्भीर बहस में है कि क्या 1991 में शुरु किये गये आर्थिक सुधार लोगों को गरीबी रेखा से उपर लाने में सफल रहे हैं ? क्या इससे बडी तादाद में लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है ? कांग्रेस ने सीखे सबक --
1996 और उसके बाद 8 वर्ष तक सत्ता से बाहर रहते हुए कांग्रेस ने यह सबक जरुर सीखा कि गरीबों के हितों की पैरवी करते हुए दिखना बहुत जरुरी है ताकि आपका वोट बैंक बना रहे यही कारण है कि सरकार की अनेक योजनाएं गरीबों की मदद करती दिखायी देती हैं उसके बावजूद देश के बडे हिस्से में गरीबी की हालत लगातार बिगडी ही है आर्थिक सुधारों के हिमायतियों का मानना था कि गरीबी 40 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत पर आ गयी है पर , सुरेश तेन्दुलकर कमेटी की रिपोर्ट ने उनके प्रचार को झूठा साबित कर दिया , जिसके अनुसार गरीबी का प्रतिशत आज भी 40 ही है अर्जुन सेंगुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत से अधिक परिवार 20 रुपये प्रतिदिन से कम आमदनी से गुजारा करते हैं 1990-91 में कुपोषण के शिकार लोगो की तादाद 21 करोड थी, लेकिन 2004-06 में यह 25.20 करोड हो गयी दुनिया के कुपोषित बच्चो में से आधे भारत में हैं पाँच साल नीचे के 42.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है तीन साल से नीचे के 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं हमारे देश में अनाज के पहाड और करोडों भूखे एक साथ मिलते हैं
मनमोहनसिहं के प्रधानमंत्रित्व में भारत में विश्व बैंक और आइएमएफ की उन नीतियों के अंतिम चरण को पूरा किया जा रहा है ,जिन्हे मनमोहनसिंह ने 20 साल पहले भारत के लिये स्वीकार किया था मनमोहंसिंह जब कहते हैं कि उन्हे दिया गया टास्क अभी अधुरा है ,इसलिये रिटायरमेंट का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता तो समझ लेना चाहिये कि जिस टास्क की वे बात कर रहे हैं ,वह विश्व बैंक का वही एजेंडा है , जो बीस साल पहले भारत में रीगन और थैचर की नीतियों को लागू करने के लिये उन्हे दिया गया था
जब सरकार के फोकस में विश्व बैंक का एजेंडा हो और देश के आमजनों की सधारण खुशियाली से भी ज्यादा महत्वपूर्ण अमरिका की दोस्ती और हित हों तो युपीए-2 के पहले साल पूर्ण होने के अवसर पर अयोजित प्रेस वार्ता में गोल-मोल जबाब देने के अलावा प्रधानमंत्री कर ही क्या सकते थे ऐसे में सरकार के इन कल्याणकारी कदमों में गरीबी को ह्टाने या गरीबों की सहायता करने से ज्यादा गरीबों का भला करते दिखत्ते रहने की भावना ही ज्यादा नजर आती है

अरुण कांत शुक्ला

No comments: