Wednesday, January 25, 2012

देखो , जंगल में आखेट चल रहा है --


देखो , जंगल में आखेट चल रहा है

मैंने कभी सुलह का रास्ता नहीं ढूंढा
सही था लड़ लिया ,
जीता तो जीता ,
हारा तो हारा ,पर,
मैंने कभी सुलह का रास्ता नहीं ढूंढा |
मेरे सीने में दहक रही है , जो आग
तुम्हारे चेहरे में पानी नहीं ,
तुम्हारी फितरत में रवानी नहीं ,
तुम इसे क्या बुझाओगे ,
मेरे सीने में दहक रही है , जो आग |
जो खुद खड़े हैं भूल भुलैय्या में
वो रास्ता क्या बतायेंगे ,
उन्हें क्या पता
मंजिल का पता ,
जो खुद खड़े हैं भूल भुलैय्या में |
देखो , जंगल में आखेट चल रहा है ,
शेर चीते तो बचे नहीं ,
शिकार इंसान हो रहा है ,
शिकारी भी इंसान है ,
देखो , जंगल में आखेट चल रहा है |
बादस्तूर अपनी दस्तूरी लीजिए ,
मजलूमों का भरोसा न टूटे , इसलिये ,
बस , व्यवस्था को गालियाँ न दीजिए ,
क्रान्ति की बात न कीजिये ,
बादस्तूर अपनी दस्तूरी लीजिए |
अरुण  कान्त शुक्ला -

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