Wednesday, February 1, 2012

छत्तीसगढ़ में मीडिया कर्मियों की सुरक्षा और स्वतंत्रता –

छत्तीसगढ़ में मीडिया कर्मियों की सुरक्षा और स्वतंत्रता – छत्तीसगढ़ में मीडिया और मीडिया कर्मियों की स्वतंत्रता और सुरक्षा पर विचार करते समय इस बात को हमेशा ध्यान में रखना होगा की छोटे राज्यों में , मीडिया , चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक , सरकारी विज्ञापनों पर ही निर्भर होते हैं | फलस्वरूप , उनके ऊपर राज्य सरकारों की आधिकारिक लाइन पर चलने या उसे ही प्रमुखता देने का भारी दबाब रहता है | यूं तो पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अखिल भारतीय स्तर पर कमेटी है , पर , अधिकतर मामलों में पूरे देश में छोटे राज्यों में पत्रकारों और मीडिया की स्वतंत्रता को कुतरने के लिए किये जाने वाले आक्रमणों के बारे में कमेटी को न के बराबर ही जानकारी रहती है | इन राज्यों के अंदर किसी भी घटना या विषय पर रिपोर्टिंग , चाहे वह कितनी भी तथ्यपरक , वस्तुगत या निरपेक्ष क्यों न हो , राज्य की शासकीय मशीनरी , राजनीतिक दलों , उद्योगपतियों और समाज के स्वयंभू ठेकेदारों की भृकुटी को ही ध्यान में रखकर की जाती है | ऐसा नहीं होने पर इनका कोपभाजन बनना पड़ सकता है और छत्तीसगढ़ इसका अपवाद नहीं है | पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ में माओवादियों गतिविधियों में भारी इजाफा हुआ है और उसी अनुपात में राजकीय सुरक्षा बलों तथा राज्य सरकार के द्वारा समर्थित या सहायता प्राप्त सतर्कता समूहों (जैसे सलवाजुडूम) की गतिविधियों में भारी इजाफा हुआ है | पत्रकारों के लिए प्रदेश के इस विशेष हिस्से में , विशेषकर जहां इन बलों की गतिविधियां अधिक हैं , पत्रकारिता भारी जोखिम का काम बन गयी है | कुछ वर्ष पूर्व नई दिल्ली के स्वतंत्र पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी ने सीपीजे ( Committee for Protection of Journalists) को बताया था कि उन्हें चार दिन तक पोलिस का एजेंट होने के संदेह में एक माओवादी इलाके में अवरुद्ध करके रखा गया था | वहीं लगभग उसी दौरान , छत्तीसगढ़ पोलिस ने फ्रीलांस फिल्मकार अजय टी गंगाधरन को तीन माह तक प्रदेश के विशेष लोक सुरक्षा क़ानून के तहत अवरुद्ध करके रखा था | अंततः उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनाया गया | विनायक सेन की गिरफ्तारी और फिर उनको जमानत मिलने पर भी छत्तीसगढ़ के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों तरह के मीडिया का स्वर राज्य सरकार के सुर में सुर मिलाने के समान ही रहा | पिछले वर्ष रायगढ़ के आरटीआई एक्टीविस्ट रमेश अग्रवाल को कई माह कारागार में इसलिए बिताना पड़े कि उन्होंने एक जनसुनवाई के दौरान कांग्रेस के सांसद और देश के माने हुए उद्योगपति के अधिकारियों के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया था और उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी | कहने की जरुरत नहीं कि जनसुनवाई किसानों की जमीन हासिल करने के लिए की जा रही थी और रमेश अग्रवाल किसानों के पक्ष में आवाज उठा रहे थे | हाल ही में प्रदेश के सरगुजा इलाके में एक आदिवासी कन्या का बलात्कार करने के बाद नक्सली बताकर गोली मार दी गयी | शुरुवाती , अनेक दिनों तक सरकारी बयान ही मीडिया में प्रमुखता पाता रहा | बाद में जब विरोध हुआ तो दूसरा पक्ष छापा गया , वह भी दबी जबान में और प्रत्येक बार सरकारी पक्ष के साथ | अंततः मामला शांत हो गया | ऐसे अनेक उदाहरण और जोड़े जा सकते हैं , जिनसे स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ का मीडिया राज्य सरकार , राजकीय बलों और राज्य सरकार प्रायोजित समूहों और उद्योगपतियों की ज्यादतियों को उजागर करने में दुर्बलता दिखाता है या उनकी अनदेखी करता है | उपरोक्त संक्षिप्त विश्लेषण की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि पिछले सप्ताह प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्य सचिव और गृहसचिव को पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें राजस्थान पत्रिका समूह की तरफ से अनेक शिकायतें व प्रतिवेदन मिले हैं कि प्रदेश में पत्रकारों को राज्य सरकार के अधिकारियों और प्राधिकरणों के द्वारा उत्पीड़ित किया जा रहा है | काटजू ने राज्य सरकार से यह कहते हुए कि पत्रकार उत्पीड़ित हैं तो प्रेस को स्वतन्त्र नहीं माना जा सकता , सात दिनों के भीतर स्पष्टीकरण माँगा है | अखबार का कहना है कि उसके कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ राज्य सरकार के अधिकारियों और विभागों की तरफ से ढेरों प्राथमिकी पोलिस में दर्ज की गईं हैं और कई तो सुदूर अंचलों में और यह सब इसलिए किया गया है कि क्योंकि उसने एक सही खबर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बारे में छापी थी | ज्ञातव्य है कि इस खबर के प्रसारित और प्रकाशन के बाद मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में धमकी दी थी कि वे खबर प्रकाशित और प्रसारित करने वालों को छोड़ेंगे नहीं , देख लेंगे | मुख्यमंत्री के इस कथन के बाद प्रदेश में ईटीवी का प्रसारण स्थानीय केबिलों में बंद करवा दिया गया था और अखबार की प्रतियां जलाईं गईं थीं | राज्य सरकार ने प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया को क्या जबाब दिया , अभी तक सामने नहीं आया है | मगर यह सच है कि छत्तीसगढ़ में सब कुछ छप सकता है सिवाय सरकार की आलोचना के | प्रदेश के मीडिया के लिए ब्रम्ह वाक्य यही है कि यदि आप सरकार के लिए नहीं हैं तो सरकार विरोधी हैं और कोई भी सरकार विरोधी सारपूर्ण खबर प्रदेश के अखबारों में छापना या न्यूज चैनलों में दिखाना अपराध है | जो भी यह अपराध करेगा , वह प्रताड़ित होगा | यही कारण है कि प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया को सारी शिकायतें पत्रिका समूह की और से ही की गईं हैं | छत्तीसगढ़ में चल रहे इस घमासान के बारे में प्रदेश के प्रायः सभी प्रमुख अखबार चुप हैं और तटस्थ भाव से इस घमासान को देख रहे हैं | मीडिया जगत में चल रहे इस घमासान को इस दृष्टिकोंण से भी प्रचारित किया जा रहा है कि यह घमासान पत्रिका समूह और प्रदेश में पहले से स्थापित एक अखबार समूह के मध्य वर्चस्व को स्थापित करने के लिए चल रही प्रतिद्वंदिता का परिणाम है | कहने की जरुरत नहीं कि यह थ्योरी भी राज्य सरकार को सहायता ही पहुंचा रही है | अरुण कान्त शुक्ला -

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