Thursday, July 12, 2012

बस यही व्यापार चल रहा है -


बस यही व्यापार चल रहा है

गगन से लेकर धरा तक,
धरा से लेकर गगन तक,
यही व्यापार चल रहा है,
आदमी आदमी को छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||  

अब दुश्मन की जरुरत है कहाँ,
जब दोस्त दोस्त से लड़ रहा है,
रुपये का व्यापार इस कदर हावी है,
आदमी आदमीयत को भी छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||  


रिश्ते रुपये, पैसे, कौड़ी, में बदल गए,
पेशे अब कोई पवित्र नहीं रहे,
किताबें अब दोस्त नहीं,
उनका एक एक हर्फ़ अब छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||

राजा को नहीं प्रजा से प्यार,
काजी की है इन्साफ से रार,
खुदा है हाजी का व्यापार,
जो जहां है बस छल रहा है,
यही व्यापार चल रहा है,
बस यही व्यापार चल रहा है||

अरुण कान्त शुक्ला  
     
   
    

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