Tuesday, September 18, 2012

20 सितम्बर का आह्वान, बहुत हुआ यूपीए, अब जाओ,



20 सितम्बर का आह्वान, बहुत हुआ यूपीए, अब जाओ,

आज शाम से चैनलों पर अंकगणित चालू है और कल के अखबार भी ममता के यूपीए सरकार से बाहर निकलने वाले समाचारों के साथ साथ उस अंकगणित से भी भरे रहेंगे कि किस तरह मुलायम और माया के बाहर से समर्थन के बल पर यूपीए सरकार 2014 तक टिकी रहेगी इसमें कोई शक नहीं कि ममता के तेवरों से जो निर्ममता यूपीए के लिए टपक रही थी, ढाई घंटे की मेराथन बैठक के बाद उसमें थोड़ी नरमी दिखाई दी और शुक्रवार तक के लिए मंत्रियों के इस्तीफे टालकर ममता ने यूपीए के लिए गुंजाईश छोड़ी है कि वो रिटेल में विदेशी निवेश, डीजल की कीमतों में एक-दो रूपये की कमी करके और सबसीडी से मिलने वाले सिलिंडरों की संख्या को 6 से 10-12 तक बढ़ाकर अपना स्पष्ट बहुमत बनाए रख सकता है

13 तारीख को डीजल की कीमत में पांच रुपये की बढ़ोत्तरी और सबसीडी से मिलने वाले सिलिंडरों की संख्या को छै तक सीमित करने तथा 14 तारीख को रिटेल, एविएशन में विदेशी निवेश की घोषणा तथा सार्वजनिक क्षेत्र के शेयरों को बेचने की घोषणा करने के बाद शनिवार को योजना आयोग की बैठक में मनमोहनसिंह का रुख दबंग के सलमान जैसा था कि जब मैं एक बार कुछ कमिट कर देता हूँ तो उसके बाद मैं अपनी भी नहीं सुनता। मनमोहन सिंह को तब शायद यह लगता होगा कि बार बार कमिट करके हर बार रिट्रीट करने वाली ममता इस बार भी ऐसा ही करेंगी। या, फिर उन्हें अपने जुगाड़ मेनेजमेंट पर पक्का भरोसा है क्योंकि जब वे वित्तमंत्री थे, उन्होंने नरसिम्हाराव को न केवल अल्पमत सरकार चलाते देखा था बल्कि उसे जुगाड़ करके बहुमत में लाते भी देखा था 2007 में वह अनुभव उनके काम आया, जब उन्होंने उसी जुगाड़मेंट के जरिये वामपंथियों को धता बताते हुए अमेरिका के साथ न केवल न्यूक्लियर समझौता किया, अपनी सरकार भी बचा ली

पर, इस बार परिस्थिति में जमीन आसमान का अंतर है 20 सितम्बर के विरोध में, जो सभी प्रायोगिक लिहाज से भारत बंद में ही परिणित होने जा रहा है, न केवल सभी विरोधी राजनैतिक दल, एमएनएस जैसे एक दो दलों को छोड़कर, शामिल हैं बल्कि समाजवादी पार्टी, बीएसपी जैसे बाहर से समर्थन दे रहे दल भी शामिल हैं जो रिटेल में विदेशी निवेश के सवाल पर तीव्र खुला विरोध जता चुके हैं यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव घोषणा कर चुके हैं कि यूपी में वे विदेशी किराना स्टोरों को नहीं आने देंगे डीएमके जो तृणमूल की तरह ही यूपीए सरकार में शामिल है एफडीआई के सवाल पर 20 तारीख के बंद में शामिल होने जा रहा है एक बार विरोध में शामिल होने के बाद, उसके ऊपर अधिक नैतिक दबाव होगा कि यूपीए के पीछे नहीं हटने पर वो भी ममता के समान सरकार से हटे

रिटेल में एफडीआई का पूरा मामला, अब,  देश के किसानों, उपभोक्ताओं के लिए कितना लाभदायक है या इससे कितने रोजगारों का सृजन होगा, इससे हटकर यूपीए के लिए विश्वास और भरोसे के संकट में बदल चुका है कामनवेल्थ, 2जी, आदर्श सोसाईटी और अब प्रधानमंत्री की नाक के नीचे कोयला आबंटन में घपला और फिर पहले प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के सभी जिम्मेदारों का उससे इनकार और फिर कोर्ट से मामलों के खुलने का नतीजा यह है कि यूपीए के पास विश्वासमत जुटाने के लायक आंकड़े आ भी जाएँ तो भी जनता का भरोसा खो चुकी सरकार ही वो रहेगी

यही कारण है कि बीस तारीख के विरोध के बाद यदि समाजवादी पार्टी इस आधार पर यूपीए को समर्थन देती है कि वो यूपी में इसे लागू नहीं होने देगी और साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए यूपीए का समर्थन जरूरी है तो अवसरवाद और अविश्वसनीयता(राजनीतिक धोखा देने) के लिए जाने वाले मुलायम अपनी बची खुची साख भी खो देंगेयही स्थिति माया के लिए भी है वो भी यूपीए को समर्थन देने के पीछे साम्प्रदायिक ताकत को रोकना सबसे बड़ा कारण बताती हैं पर, यदि अब वे ऐसा करती हैं तो उनका रिटेल का विरोध महज दिखावा ही होगा

दरअसल सभी क्षेत्रीय दलों की साख इस आधार पर इस पूरे प्रकरण में दांव पर लगी है कि यदि वे अखिल भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाना चाहते है, तो उन्हें, डीजल की कीमतों के  मामले, रसोई गैस का मामले और रिटेल में विदेशी निवेश का मामले में, जो देश और देशवासियों से संबंधित है, अपने राज्यों में लागू होने नहीं देंगे जैसे संकीर्ण सोच वाले निर्णय से बचना होगा ममता ने दो टूक फैसला करके उनके सामने उदाहरण रख दिया हैआखिर, समाजवादी पार्टी और बसपा के भी समर्थन वापस लेने के बाद, देश में होना तो मध्यावधी चुनाव ही हैं और उसमें सत्ता की बागडोर किसके पास जायेगी, ये निर्णय तो देशवासियों को ही करना है यदि आज समर्थन जारी रखा जाता है तो इसका मतलब है कि चुनाव 2014 में तय समय पर ही होंगे, तब भी देश की जनता ही चुनाव में सत्ता, जिसको वो पसंद करेगी, उसे ही सौपेंगी किन्तु रिटेल में एफडीआई आ जायेगी

वह चाहे यूपी हो या भाजपा शासित राज्य, जिन्होंने ये घोषणा करके रखी है कि वे अपने राज्यों में विदेशी रिटेल स्टोर नहीं खुलने देंगे, उन्हें एक बात समझनी होगी कि वे अधिक समय तक अपने उस रुख पर कायम नहीं रह सकते केन्द्र का यह कहना, कि राज्यों को छूट होगी कि वे चाहें तो अपने राज्यों में रिटेल स्टोरों को आने दें या नहीं आने दें, एक बहलावे के अलावा कुछ नहीं है जैसा कि जाने माने कृषि और खाद्य विश्लेषक देवेन्द्र शर्मा का कहना है कि जिन भीमकाय रिटेलर्स को भारत में आना है, वे अच्छी तरह जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अंतर्गत बाईलेट्रल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एंड प्रोटेक्शन एग्रीमेंट्स (BBIPAs) के सदस्य देशों को विदेशी निवेशकों को राष्ट्रीय पहुँच और व्यवहार देना होगा भारत इसका सदस्य है और भारत को  रिटेल में आने वाली भीमकाय कंपनियों को राष्ट्रीय पहुँच उपलब्ध करानी होगी इस एग्रीमेंट पर सत्तर देश हस्ताक्षर कर चुके हैं यदि राज्य अड़ंगा लगाएंगे, तो आने वाली कंपनियां राज्यों को मजबूर करने के लिए कानूनी दबाव लाएंगी

बड़े शहरों तक ही ये स्टोर सीमित रहेंगे, एक झांसे के अलावा कुछ नहीं है थाईलेंड, मेक्सिको, अमेरिका और यूरोप के देशों का ही अनुभव बताता है कि ये राजनीतिक दलों , नौकरशाही के बीच करोड़ों रुपया लाबिंग पर खर्च करते है ताकि इनके पक्ष में नियम बनें और ये तेजी से विस्तार करें यह पहली बार हो रहा है कि केन्द्र सरकार के नीतिगत निर्णय के विरोध में वो राजनीतिक दल शामिल हो रहे हैं, जिनके संख्या बल पर सरकार टिकी है और जो सरकार की नीति के पूरी तरह खिलाफ हैं देशवासी समाजवादी पार्टी और बसपा की तरफ देख रहे हैं केवल यूपीए की नहीं इन दलों की भी साख दांव पर लगी है यदि, 20 सितम्बर के देश स्तरीय विरोध के बाद भी रिटेल में एफडीआई पर, डीजल की कीमत पर और गेस के सिलिंडरों की संख्या पर सरकार अपने निर्णय नहीं बदलती तो समाजवादी पार्टी और बसपा को कह देना होगा बहुत हुआ यूपीए, अब जाओ यदि, वो ऐसा नहीं कहते तो फिर उन्हें 20 सितम्बर को विरोध आयोजित करने का भी कोई नैतिक अधिकार नहीं है

अरुण कान्त शुक्ला                                                       19सितम्बर,2012    
          

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