Tuesday, January 22, 2013

छत्तीसगढ़ सरकार डायग्नोस्टिक सेवाओं के आउटसोर्सिंग के निर्णय को वापस ले –




छत्तीसगढ़ सरकार का डायग्नोस्टिक सेवाओं को निजी भागीदारी के हाथों में सोंपने का निर्णय एक ऐसे समय में आया है, जब प्रदेश का निजी चिकित्सा क्षेत्र केंसर का भय दिखाकर युवा लड़कियों तक के गर्भाशय निकालने के ऑपरेशनों को अंजाम देने से लेकर, बिना चिकित्सा के स्मार्ट कार्ड से पैसा निकालने के गंभीर आरोपों में फंसा हुआ है आरोपों के घेरे में प्रदेश की राजधानी रायपुर के साथ साथ अनेक जिलों के नामी गिरामी नर्सिंग होम और ख्याति प्राप्त चिकित्सक हैं प्रदेश के निजी चिकित्सा क्षेत्र की पेशेवर पवित्रता के ह्रास का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्मार्ट कार्ड से फर्जी तरीके से पैसा निकालने का खुलासा होने के बाद से रायपुर के एक निजी नर्सिंग होम का संचालक डॉक्टर लगभग तीन माह से फरारी पर है इसमें सबसे गंभीर बात जो उजागर हुई है, वो है, प्रदेश के निजी क्षेत्र के बड़े क्षत्रपों और प्रदेश के ग्रामीण तथा आदिवासी इलाकों में फैले नीम-हकीम तथा झोला छाप डॉक्टरों के बीच का दलाली का संबंध, जिसका शिकार प्रदेश के ग्रामीण तथा आदिवासी इलाके के रहवासी हो रहे हैं

हाल ही में आई जनगणना 2011 की प्राविजनल रिपोर्ट भी निजी चिकित्सा क्षेत्र के नैतिक आचरण के प्रति गंभीर संशय खड़ा करती है रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों में प्रति एक हजार लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 2001 की जनगणना के 975 की तुलना में गिरकर 964 हो गया है यह गिरावट प्रदेश के शहरी क्षेत्र में तो हुई ही है, साथ ही आश्चर्यजनक रूप से अधिकाँश आदिवासी क्षेत्र में भी हुई है इस गिरावट को इस तथ्य के साथ जोड़कर देखने पर निजी चिकित्सा क्षेत्र की पैसा कमाने की ललक और तमाम नैतिक मूल्यों तथा सरकारी नियम- कायदों को धता बताने की प्रवृति का पता चलता है कि माओवाद से प्रभावित प्रदेश के आदिवासी इलाकों में, जहाँ प्राथमिक शिक्षा और साधारण स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना भी मुश्किल हो रहा है, निजी स्वास्थ्य सेवाएं अल्ट्रासाऊँड मशीनों के साथ तेजी से बढ़ी हैं उसी अनुपात में भ्रूण निर्धारण कर गर्भपात की संख्याओं में भी वृद्धि हुई है अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं और समूहों ने राज्य सरकार का ध्यान इस प्रवृति की ओर आकृष्ट करने की कोशिश की, किन्तु लोक स्वास्थ्य को निजी हाथों में सोंपकर, चैन की बंसी बजाने की तैय्यारी जो सरकार कर रही हो, वो सरकार उन सामाजिक कार्यकर्ताओं और समूहों की बातों पर ध्यान क्यों कर देती?

इस परिप्रेक्ष्य में यदि हम देखें तो प्रदेश में डायग्नोस्टिक सेवाओं को निजी भागीदारी के लिए सोंपने का सीधा मतलब है कि सरकार अब चिकित्सा क्षेत्र के क्षत्रपों को अपने खुद के एजेंट सुदूर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में बिठालने का अवसर सरकारी याने जनता की गाढ़ी  कमाई से चुकाए गए टेक्स के पैसों से दे रही है प्रदेश की घोषित चिकित्सा नीति का लब्बो लुआब भी यही है कि प्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार की लोक स्वास्थ्य सेवाओं में सुघड़ता और मजबूती लाने के लिए निवेश करने के बजाय प्रदेश सरकार निजी क्षेत्र को ही निवेश करने के लिए लगभग मुफ्त में जमीन उपलब्ध कराने से लेकर प्रत्येक तरह की सुविधाएं मुहैय्या करायेगी यही कारण है कि जहां एक ओर निजी क्षेत्र सरकार की तरफ से जानबूझकर पैदा किये गये कुप्रशासन और कमजोर निगरानी व्यवस्था का फ़ायदा उठाते हुए प्रदेशवासियों को स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर न केवल लूट रहा है बल्कि धोखाधड़ी करते हुए बीपीएल कार्ड धारियों को मिलने वाले बीमा लाभ के पैसे को भी हडप रहा है तो दूसरी और सरकारी क्षेत्र चरम भ्रष्टाचार, लापरवाही, लालफीताशाही और अव्यवस्था के चंगुल में फंसा हुआ हैसरकारी स्वास्थ्य विभाग में न केवल उपकरणों की खरीद में बड़े बड़े घपले हुए हैं बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ किया जा रहा खिलवाड़ नेत्र कांडों के रूप में सामने आ रहा है, जिसमें सैकड़ों लोगों को अपनी आँखों की रोशनी गंवानी पड़ी है

यह बात अलग है कि पिछले दो दशकों में भारत ने जिन उदारवादी नीतियों पर चलना शुरू किया है, उसका हश्र स्वास्थ्य सेवा के बाजारीकरण के रूप में ही होना है 12वीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप में उसका पूरा खाका मौजूद है और रमन सरकार भी उसी रास्ते पर चल रही हैपर, यह भी एक वास्तविकता है कि उन सभी यूरोपीय देशों और यहाँ तक कि अमेरिका में भी आज यह शिद्दत से महसूस किया जा रहा है कि चिकित्सा के क्षेत्र में निजी भागीदारी को बड़ी भूमिका देने के परिणाम उन देशों की बहुसंख्यक जनता के लिए नकारात्मक ही रहे हैं आस्ट्रेलिया(1998), मलेशिया(1997) और अमेरिका(2007) में किये गए अध्यन बताते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश से न तो प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, न ही लागत में और रोगियों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक बोझ में कोई कमी आती है उल्टे, चिकित्सा के क्षेत्र में मुनाफे की लालच में कूदे बड़े कॉर्पोरेट न सरकार को कुछ समझते हैं और न ही किसी निगरानी की परवाह करते हैंबड़े कार्पोरेट्स को ऐसा करते देखकर मध्यम और छोटे निजी खिलाड़ी भी उसी रास्ते पर चलने लगते हैं नतीजे की तौर पर शनैः शनैः सरकारों की भी राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छा शक्ति कमजोर पड़ती जाती है और सरकारें इन पर से पूरा नियंत्रण खो देती हैं अमेरिका के अध्यन में तो यह भी कहा गया है कि अमेरिका के स्वास्थ्य क्षेत्र के कमजोर प्रदर्शन का पूरा पूरा कारण चिकित्सा के क्षेत्र में बाजार तंत्र और मुनाफाखोर फर्मों पर भरोसा करना है रिपोर्ट के अंत में अमेरिकी सरकार को ये सलाह भी दी गई है कि वो दूसरे देशों को चेताये कि वो इस रास्ते पर चलने से बाज आयेंखुद हमारे देश में कुछ समय पहले राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की एक रिव्यू कमेटी ने बिहार में डायग्नोस्टिक सेवाओं को बाहरी क्षेत्रों को दिये जाने की आलोचना की थी

वास्तविकता यह है कि छत्तीसगढ़ में राज्य संचालित स्वास्थ्य सेवाएं चिकित्सकों, विशेषज्ञों से लेकर स्वास्थ्य से संबंधित कर्मचारियों की प्रत्येक श्रेणी में अमले, उपकरणों और स्वयं के भवनों की कमी से जूझ रही है छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में जहां की आधी से अधिक आबादी गरीबी सीमा रेखा से नीचे हो जहाँ के पचास से अधिक प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हों जहाँ एक हजार आदिवासी जीवित जन्मे बच्चों में से 91 बच्चे एक वर्ष के भीतर ही मर जाते हों वहाँ राज्य शासन की प्राथमिकता में राज्य संचालित स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना और इस मूलभूत आवश्यकता को खुद नागरिकों तक पहुंचाने की दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाए रखना होना चाहिये, पर, दुर्भाग्य से रमण सरकार में वो इच्छाशक्ति दिखाई नहीं दे रही है

राज्य सरकार भले ही कहती रहे, जैसा कि सरकार के जनसंपर्क आयुक्त बैजेन्द्र कुमार ने कहा भी है कि डायग्नोसिस सेवाओं को बाहरी लोगों के हाथों में देने की व्यवस्था लोक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लाई गई है, वास्तविकता यही है कि जनता की गाढ़ी कमाई से टेक्स के रूप में वसूले गए पैसों को राज्य सरकार निजी क्षेत्र को सौंप रही है और प्रदेश के आम लोगों को चिकित्सा के बाजार में ग्राहक बनाकर भटकने के लिए छोड़ रही है

अरुण कान्त शुक्ला
जनवरी23’2013
      

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