जे के लक्ष्मी सीमेंट में आगजनी..
धुंए के पीछे का सच..
आसमान को छूती इमारतों में चैन की नींद की गारंटी लेने वाली
जे के लक्ष्मी सीमेंट के दुर्ग जिले के मलपुरीखुर्द के निर्माणाधीन कारखाने में 4
अप्रेल की शाम को हुई आगजनी ने ग्रामवासियों की रात की नींद के साथ साथ दिन का चैन
भी छीन लिया है। उद्योग समूहों की
सेवा में तत्परता के साथ तैयार खड़ी रहने वाली राज्य सरकार की पोलिस ने आनन फानन
में 1200 की जनसंख्या वाले ग्राम मलपुरीखुर्द में रात को दबिश देकर 80 से ज्यादा
लोगों को जो जैसा मिला, वैसे ही दबोच लिया। ग्राम वासियों ने
पोलिस की इस एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ 12 किलोमीटर दूर स्थित नंदनी थाने का घेराव
कर दिया। गाँव वालों का कहना
है की पोलिस ने उनके साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया है। पुलिसिया आतंक इतना
था की पुलिसवाले लोगों के घरों के दरवाजे तोड़कर भीतर घुसे और लोगों को उठा कर ले
गए।
खेत, खलिहान,चैन छीन ले गया जे के लक्ष्मी प्लांट
1200 की आबादी वाले ग्राम मलपुरीखुर्द के लोग यूं तो पिछ्ले
लगभग 48 दिनों से उन किसानों के परिवार वालों को नौकरी देने की मांग को लेकर
आन्दोलन कर रहे थे, जिनकी जमीनें प्लांट में गईं हैं, पर, जेके प्रबंधन से पूरे
गाँव और आसपास के लोगों के विवाद की एक और बड़ी वजह गाँव के मुख्य पहुँच मार्ग पर
प्लांट के द्वारा अवैध कब्जा किये जाने को लेकर थी। गाँव का रास्ता बंद
होने से सभी ग्रामवासी विरोध में थे। यह मार्ग मलपुरी
वासियों को मात्र 4 किलोमीटर की दूरी तय करने पर गिरहोला, अहिवारा, बेरला, पहुंचा
देता था, लेकिन इस कच्चे मार्ग पर प्लांट के द्वारा कब्जा करने से ग्रामीणों को 4
के बजाय 7/8 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ रहा है। गाँव के बुजुर्ग
महिला कुमारी बाई तथा और लोगों ने बताया की न केवल मलपुरीखुर्द बल्कि आसपास के
गाँव के निवासी भी जे के लक्ष्मी प्रबंधन की इस मनमानी से खासे कष्ट में हैं। इनका कहना था की
प्लांट आने से विकास की बात तो मंजूर की जा सकती है लेकिन प्लांट प्रबंधन की
मनमानी और राज्य सरकार की प्रबंधन की तरफदारी के चलते उनके खेत, जमीन, और शांती
सभी उनसे छीन ली गयी है।
कर्मचारी नहीं गुंडे पाल रखे हैं प्रबंधन ने
प्लांट में अभी उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। सिविल और
फेब्रीकेशन का काम दो ठेका कंपनियां जीडीसीएल और हाजी बाबा कंपनियां कर रही हैं।कंपनी के पूर्णकालिक
निदेशक शैलेन्द्र चौकसे ने कंपनी की तरफ से सफाई पेश करने के लिए रायपुर में बुलाई
प्रेस कांफ्रेंस में बताया की कंपनी में कार्यरत 1200 कर्मचारियों में से 800
बाहरी तथा 400 स्थानीय हैं। ग्रामवासियों के
अनुसार कंपनी के अधिकारी झूठ बोल रहे हैं, स्थानीय लोग कंपनी की बताई हुई संख्या
से बहुत कम हैं। गाँव के एक और अन्य
बुजुर्ग 80 वर्षीय झंगलु का कहना है कि प्रबंधन ने कर्मचारी नहीं गुंडे पाल रखे
हैं जो आये दिन गाँव में पहुंचते हैं और आतंक मचाते हैं। अब उन्हें उनके
खेतों और उनकी जमीनों तक पहुँचने से रोका जा रहा है। जहां देखो तार के
घेरे लगाकर प्लांट के गार्ड बिठा दिए गए हैं। ग्रामवासी इस बात
से रुष्ट हैं की कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी उनके गाँव मलपुरीखुर्द का नाम लेकर आगजनी
का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है की वे
कंपनी की ज्यादतियों से सबसे अधिक प्रभावित हैं, इसलिए आंदोलन करते हैं। उन्हें रास्ते से
हटाने के लिए कंपनी शासन के साथ मिलकर यह षड्यंत्र कर रही है।
धुंए के पीछे छुपा सच
जे के लक्ष्मी प्रबंधन का आरोप है कि 4 अप्रेल की शाम को
कारखाने में आग ग्राम मलपुरीखुर्द के ग्रामीणों ने ही लगाई। पर, अनेक ऐसे सवाल
हैं, जिनके जबाब धुंए के पीछे के सच को बाहर ला देंगे और जिनका जबाब देने से जे के
लक्ष्मी प्रबंधन, राज्य सरकार, प्रशासन और पोलिस सभी कतरा रहे हैं।
पहला सवाल
क्या एक गाँव मलपुरीखुर्द के ग्रामीण, लगभग 200, जिनमें 50
के करीब महिलाएं भी शामिल हैं, कारखाने में मौजूद 1200 कर्मचारियों, सुरक्षा
गार्डों और कंपनी के बाऊंसरों की मौजूदगी में पेट्रोल बम और जरीकेनों में केरोसीन
लेकर इतना बड़ा हमला कर सकते हैं?
दूसरा सवाल
कि, आन्दोलन लगभग पिछले 48 दिनों से चल रहा था और यदि
मलपुरीखुर्द के ग्रामीण ही, कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक शैलेन्द्र चौकसे के
कथनानुसार, इस अग्निकांड के लिए जिम्मेदार हैं तो उनकी तैय्यारी की खबर कंपनी,
शासन, अधिकारयों और पोलिस को कैसे नहीं लगी?
तीसरा सवाल
कंपनी के एचआर हेड मेजर डी पी मान के अनुसार मलपुरी खुर्द
के ग्रामीणों ने 200 लोगों को नौकरी देने की मांग को मनवाने के लिए कारखाने के
अन्दर की लगभग 80 एकड़ जमीन पर पिछले दो माह से कब्जा करके रखा था। यही वह क्षेत्र है,
जहां आगजनी हुई। मेजर मान के बयान
से तीसरा अहं सवाल खड़ा होता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 22
किलोमीटर और कारखाने के पास स्थित थाने से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर किसी
प्राईवेट कारखाने की सीमा के भीतर 80 एकड़ के क्षेत्र पर एक गाँव के कुछ ग्रामीण दो
माह से कब्जा जमाये हों, जिससे सिविल और फ्रेबिक्स की ठेका कंपनी काम नहीं कर पा
रही हों, और कंपनी प्रबंधन इसकी शिकायत पुलिस में या राज्य सरकार से न करे, क्या
यह संभव है?
चौथा सवाल
आगजनी की घटना के ठीक तीन दिन पहले प्लांट में एक दुर्घटना
हुई, जिसमें एक 19 वर्षीय किशोर कर्मचारी की मृत्यु हुई और दो अन्य गंभीर रूप से
घायल हुए।तब भी, कंपनी
प्रबंधन ने मलपुरीखुर्द के ग्रामीणों पर प्लांट के भीतर घुसने और कार्यालय के
सामने खड़ी कार, जेसीबी हाईवा और अन्य वाहनों के कांच तोड़ने के आरोप लगाए थे। पर, पूरे मामले में
प्रशांत ठाकुर, एएसपी, दुर्ग सिटी का कहना
था कि “मर्ग कायम कर जांच
शुरू कर दी गयी है। तोड़फोड़ के संबंध
में किसी तरह की शिकायत नहीं मिली है।शिकायत मिलाने पर
कार्रवाई की जायेगी।” तब चौथा सवाल यह है कि क्या 1 अप्रेल को कंपनी द्वारा
मीडिया में तोड़फोड़ की बात फैलाना, पर पोलिस को शिकायत नहीं करना, 4 अप्रेल को हुई
आगजनी की पूर्व तैय्यारी तो नहीं थी?
सीमेंट एम्पलाईज यूनियन के प्रदेश सचिव दुष्यंत तिवारी का
इस विषय में कहना है कि किसानों के द्वारा नौकरी माँगने अथवा मुआवजा बढ़ाने की मांग करने पर निजी कंपनियां अधिकारियों के
साथ मिलीभगत करके इस तरह की घटनाओं को अंजाम देती हैं ताकि किसानों का आन्दोलन
समाप्त हो जाए और वे अपनी मूल मांगों से हटकर पोलिस और अदालत के चक्करों से बचने
में भिड़ जायें। दुष्यंत तिवारी ने
कहा की ऐसा ही लगभग दो वर्ष पूर्व लेंको से जमीन का मुआवजा और नौकरी की मांग करने
वाले किसानों के साथ किया गया था और अब वही कहानी जे के लक्ष्मी में दोहराई जा रही
है। पेट्रोल बम और जरीकेन में केरोसीन कंपनी की मिलीभगत से प्लांट की गई स्टोरी
है। दुष्यंत तिवारी ने कहा की छत्तीसगढ़ में सीमेंट के कारखानों में 80 फीसदी
कर्मचारी ठेके पर हैं और निरंतर होते मशीनीकरण से उनको मिलने वाले काम में लगातार
कटौती हो रही है। छत्तीसगढ़ के सीमेंट
उद्योग में मजदूरों का ठेका लेने वाले अधिकाँश ठेकेदार या तो भाजपा या कांग्रेस के
साथ संबंध रखने वाले दबंग हैं, जिन पर राज्य सरकार का वरद हस्त बना रहता है| सीमेंट
कंपनियां कार्टेल बनाकर सीमेंट के दाम मनमाने तरीके से बढ़ाती हैं, पर, ठेका
मजदूरों का भविष्य निधी का पैसा तक नियमित रूप से नहीं जमा कराती हैं। इन सारे मामलों में
राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रहती है।
किसानों को धोखा देकर खरीदीं जमीनें
कंपनी की तरफ से सफाई देने के लिए बुलाई गयी प्रेस
कांफ्रेंस में कंपनी के पूर्णकालिक निदेशक शैलेन्द्र चौकसे ने कहा कि जे के
लक्ष्मी ने छत्तीसगढ़ में किसी भी किसान से कोई
जमीन नहीं खरीदी है और न ही जे के लक्ष्मी को राज्य सरकार ने जमीन
अधिग्रहित करके दी है, इसलिए कंपनी की किसी को नौकरी देने की कोई जिम्मेदारी नहीं
है। तब कंपनी ने जमीन किस से खरीदी?
जे के लक्ष्मी ने कारखाने के लिए लगभग पूरी जमीन 475 एकड़
हरियाणा के एक ही व्यक्ति पदमसिंह से खरीदी है।
कंपनी ने छत्तीसगढ़ में जमीन खरीदना 2010-11 में शुरू किया। एक वर्ष पूर्व हरियाणा
के अनेक लोगों के नाम से मलपुरी खुर्द की सारी जमीन खरीद ली गयी थी, जिसे बेचने की
पॉवर ऑफ़ अटार्नी पदमसिंह के पास थी, जिससे जे के लक्ष्मी ने पूरी जमीन खरीदी। ऐसा ही सेमरिया,
नंदनीखुंदनी, घिकुड़ीया, खासाडीह, पिटौरा, गिरहोला ग्रामों की जमीन के साथ हुआ।
सबसे अधिक जमीन मलपुरीखुर्द के किसानों की कारखाने में गयी है। जमीनों का सौदा
करते समय किसानों को बताया गया था कि इन जमीनों में गन्ने की खेती की जायेगी। यदि हरियाणा के एक
व्यक्ति ने एक वर्ष पूर्व दुर्ग जिले में जमीनें खरीदीं और फिर कंपनी को बेचीं, इस बात को इस तथ्य के
साथ जोड़कर देखा जाए कि जे के लक्ष्मी ने एक कारखाना हाल ही में हरियाणा के झज्जर
में भी डाला है तो तस्वीर साफ़ हो जाती है।
निजी उद्योग समूहों का यह पुराना हथकंडा है कि वे पहले
गुपचुप तरीके से सर्वे कराकर कारखाने के लिए स्थल का चुनाव करते हैं और फिर दलालों
के मार्फ़त ओने पोने दामों में सौदा करके जमीनें खरीद लेते हैं। इतना ही नहीं
ग्रामवासियों का यह भी कहना है कि कंपनी ने 35 एकड़ सरकारी घास जमीन और आम रास्ते
पर भी कब्जा कर लिया है।
छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम का एक और दुरुपयोग
छत्तीसगढ़ सरकार जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा
अधिनियम लेकर आई थी, तब राज्य के जनवादी आन्दोलन ने उसका खासा विरोध किया था कि
सरकार इसका प्रयोग किसानों, मजदूरों और जनवादी आन्दोलनों को दबाने के लिए करेगी।समय ने इसे प्रमाणित
भी किया है। विनायक सेन, फ्री
लांस पत्रकार टी गंगाधरन, आरटीआई एक्टिविस्ट और किसानों की जमीन के जबरिया
अधिग्रहण के खिलाफ लड़ने वाले रायगढ़ के रमेश अग्रवाल जैसे लोगों के ऊपर इस अधिनियम
का प्रयोग हुआ है।अब राज्य सरकार ने
जे के लक्ष्मी में नौकरी माँगने वाले किसानों के अगुआ वीरेन्द्र कुर्रे को न केवल
आनन् फानन में गिरफ्तार किया, उसके ऊपर छत्तीसगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम भी लगा
दिया है। पोलिस का यह भी
कहना है कि उसके घर से माओवादी साहित्य बरामद हुआ है।याने, या तो उद्योग
समूहों, राज्य सरकार और उसके अधिकारियों की लूट खसोट, अन्याय, अत्याचार और शोषण के
सामने नतमस्तक रहो, नहीं तो माओवादी बनाकर जेल में सड़ने के लिए तैयार रहो।
इस पूरे मामले में राज्य सरकार का रवैय्या प्रदेश के
किसानों को सांत्वना देने वाला भी नहीं है| राज्य सरकार नए उद्योगों के लिए लगातार
एमओयू करते जा रही है| राज्य की औद्योगिक नीति में उद्योगपतियों के लिए सब कुछ है
और उनके प्रत्येक हित का ध्यान रखा गया है, लेकिन बेरोजगारों के लिए कोई नीति नहीं
है। उद्योग समूह कारखाने लगाने के लिए किसानों और आदिवासियों को धोखे में रखकर
जमीनें खरीद रहे हैं। जनसुनवाई के नाम पर
पोलिस और उद्योग समूहों के दादा (पाले हुए गुंडे) किसानों को डराते धमकाते हैं|
अधिग्रहित जमीन से ज्यादा जमीन, सरकारी हो या किसानों की, अवैध रूप से कब्जा की जा
रही है। सामुदायिक उपयोग की जमीनों और गाँवों को आपस में जोड़ने वाले रास्तों पर कब्जा
किया जा रहा है। विरोध होने पर
राज्य सरकार तथा पूरा
प्रशासन उद्योग समूहों के पक्ष में लाठी गोली लेकर किसानों
के ऊपर पिल पड़ता है।
हाल ही में राईट्स एंड रिसोर्सेज एनिशिएटिव और सोसाईटी फॉर
प्रमोशन ऑफ़ वेस्टलेंड डेवलपमेंट ने कान खड़े करने वाली रिपोर्ट दी है कि छत्तीसगढ़
में कृषि, वनभूमी तथा सामुदायिक उपयोग की जमीन पर खदान और उद्योग लगाने के कारण
प्रदेश के 27 में से 12 जिलों में हालात खूनी संघर्ष की हद तक जा सकते हैं। भाजपा की राज्य
सरकार को आदिवासियों और किसानों के हितों की लगातार उपेक्षा और उनके आन्दोलनों को
दबाने का दुष्परिणाम छै माह बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में अवश्य भुगतना
पड़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
अरुण कान्त शुक्ला
19,अप्रेल,2013
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