नरेंद्र
मोदी ने एक नया कारनामा कर दिखाया है| उनके द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार
उन्होंने तत्काल प्रभाव से गुजरात की बेरोजगारी दर कम करके 1% कर दी है|
उनका कहना है की उन्हें तत्काल प्रभाव से देश का प्रधानमंत्री नियक्त किया
जाए तो वो भारत की बेरोजगारी दर भी तुरंत प्रभाव से कम करके 1% घोषित कर
देंगे|ये पता चलते ही कि नरेंद्र मोदी गुजरात की बेरोजगारी दर को घटाकर 1%
तक ले आयें हैं, अमेरिका ने चिढ़कर डालर के
भाव रुपये की तुलना में बढ़ा दिए| इससे हीरा महंगा हो गया और गुजरात के
छोटे हीरा व्यापारियों ने अपने कारोबार बंद कर दिए जिससे करीब 25000 कारीगर
बेरोजगार हो गए| ज्ञातव्य है की अमेरिका पहले से ही नरेंद्र मोदी से चिढ़ता
है और उसने नरेंद्र मोदी को वीसा देने से मना कर दिया है| नरेंद्र मोदी की
योजना है की भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद वो ओबामा को भारत का वीसा
नहीं देंगे| उनके इस ऐलान से उनके भक्त खुश हो गए हैं और उनकी जयकार कर रहे
हैं|भगवान जपो आन्दोलन के अध्यक्ष अनाथ जी ने मोदी की प्रशंसा करते हुए
ऐलान किया है की भजपो पार्टी के सभी कार्यकर्ता और नेता कल प्रातः सूर्योदय
के समय अपने अपने घर के बाहर खड़े होकर नरेंद्र मोदी को खड़ा
सम्मान(Standing Ovation) देंगे|अनाथ जी की ये बात सुनते ही भजपो आन्दोलन
के वरिष्ठ नेता एक के बाद एक बीमार पड़ने लगे हैं|अनाथ जी का कहना है कि
नरेंद्र जी के पी.एम. बनते ही वे पूरे देश की जनता को रोज ऐसा करने के लिए
कहेंगे|आन्दोलन के वरिष्ठ नेताओं की बीमारी पर टिप्पणी करते हुए अनाथ जी ने
कहा की वे कब तक बीमार रहेंगे, उन्हें भी संघम शरणम गच्छामी होना ही है|
Saturday, June 29, 2013
रजनी कान्त बर्खास्त : रजनी कान्त का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया
ईश्वर ने रजनीकान्त को बर्खास्त कर दिया है| अब रजनीकांत वो सारे कार्य नहीं कर पायेगा, जो ईश्वर भी नहीं कर पाता था| केदार बाबा से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बता गया है की ईश्वर से भी नहीं बन पाने वाले कार्यों को करने के लिए अब भगवान जपो आन्दोलन के प्रचारमंत्री और गुजरात में धर्मराज स्थापित करने वाले अलोकिक लोकतांत्रिक नेता सर्व शक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वत्र उपस्थित नरेंद्र को रजनी कान्त के कार्यों का भार सौंपा गया है| विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने कार्यभार संभालते ही अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए अपने कन्धों पर बिठाकर 15000 लोगों को केदारनाथ से बाहर निकाला| सभी जमीनी रास्ते बंद होने के कारण उन्हें हवाई मार्ग से ये कार्य करना पड़ा| बताया जाता है की उनके हाथ में एक दूरबीन थी, जिसका प्रयोग करते हुए उन्होंने केवल गुजरातियों को चिन्हित किया और उन्हें ही बचाया| विज्ञप्ति में बताया गया है कि जब ईश्वर को पता चला कि नरेन्द्र ने केवल गुजरातियों को बचाया है तो ईश्वर बहुत नाराज हुए और नरेंद्र को याद दिलाया की अब उनका स्तर राष्ट्रीय है और उन्हें संकीर्णवाद से बचना चाहिए| इस फटकार के बाद, नरेंद्र जी ने तुरंत केदारनाथ को बनाने की जिम्मेदारी खुद पर दिए जाने की मांग कर दी है|वे देश में घूम घूम कर मांग करने वाले हैं कि भारत पर शासन करने वाले अधर्मियों को हटाकर देश की बागडोर उन्हें सौंपी जाए ताकि वे देश में धर्म का शासन लागू कर सकें, जिससे ईश्वर कुपित होकर केदारनाथ जैसा तांडव पुनः न करे|
ईश्वर ने रजनीकान्त को बर्खास्त कर दिया है| अब रजनीकांत वो सारे कार्य नहीं कर पायेगा, जो ईश्वर भी नहीं कर पाता था| केदार बाबा से जारी प्रेस विज्ञप्ति में बता गया है की ईश्वर से भी नहीं बन पाने वाले कार्यों को करने के लिए अब भगवान जपो आन्दोलन के प्रचारमंत्री और गुजरात में धर्मराज स्थापित करने वाले अलोकिक लोकतांत्रिक नेता सर्व शक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वत्र उपस्थित नरेंद्र को रजनी कान्त के कार्यों का भार सौंपा गया है| विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने कार्यभार संभालते ही अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए अपने कन्धों पर बिठाकर 15000 लोगों को केदारनाथ से बाहर निकाला| सभी जमीनी रास्ते बंद होने के कारण उन्हें हवाई मार्ग से ये कार्य करना पड़ा| बताया जाता है की उनके हाथ में एक दूरबीन थी, जिसका प्रयोग करते हुए उन्होंने केवल गुजरातियों को चिन्हित किया और उन्हें ही बचाया| विज्ञप्ति में बताया गया है कि जब ईश्वर को पता चला कि नरेन्द्र ने केवल गुजरातियों को बचाया है तो ईश्वर बहुत नाराज हुए और नरेंद्र को याद दिलाया की अब उनका स्तर राष्ट्रीय है और उन्हें संकीर्णवाद से बचना चाहिए| इस फटकार के बाद, नरेंद्र जी ने तुरंत केदारनाथ को बनाने की जिम्मेदारी खुद पर दिए जाने की मांग कर दी है|वे देश में घूम घूम कर मांग करने वाले हैं कि भारत पर शासन करने वाले अधर्मियों को हटाकर देश की बागडोर उन्हें सौंपी जाए ताकि वे देश में धर्म का शासन लागू कर सकें, जिससे ईश्वर कुपित होकर केदारनाथ जैसा तांडव पुनः न करे|
आपदा में मानव जीवन को मदद पहुंचाते समय भेदभाव मानवता के खिलाफ अपराध
मेरे
व्यंग लेख “रजनीकांत बर्खास्त:रजनीकांत का कार्यभार
नरेंद्र को सौंपा गया” पर आये कमेंट्स का जबाब...
आपदा में मानव जीवन को मदद
पहुंचाते समय भेदभाव मानवता के खिलाफ अपराध
प्रवक्ता पर मेरे व्यंग लेख “रजनीकांत
बर्खास्त:रजनीकांत का कार्यभार नरेंद्र को सौंपा गया” पर अभी तक
31 प्रतिक्रियाएं आ चुकी हैं| मैं सर्वोत्कृष्ट विचार व्यक्त करने के लिए बहस में
शामिल हुए सभी महानुभावों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ, जिनके प्रयासों से
मुझे यह दूसरा लेख, व्यंग नहीं, लिखने का अवसर मिल रहा है| मैं चाहता तो प्रत्येक
कमेन्ट पर जबाब दे सकता था किन्तु वैसा करने में एक तो दोहराव बहुत ज्यादा होता और
अनेक बार मैंने देखा है की कमेन्ट पर जबाब देते समय अच्छे से अच्छे लेखक की भी
लेखन शैली कमेन्ट करने वाले विद्वान के समान हो जाती है और कमेन्ट के जबाबों से
जाती रुझानों की बू आने लगती है| इसलिए मैंने उस तरीके को नहीं अपनाना ही ज्यादा
उत्तम समझा| मैं आदरणीय श्री आर.सिंह जी का विशेष आभार प्रकट करना चाहता हूँ,
जिन्होंने ढाल बनकर प्रतिक्रियाओं की धार कम करने का भरपूर प्रयास किया| उनके
प्रयास को मिली असफलता के लिए मुझे अत्यंत खेद है और उन्हें प्राप्त हुए ज्ञान के
लिए हार्दिक खुशी कि उन्हें पता चल गया कि;
“ऐसा क्यों है कि मोदी समर्थक अपनी सब मर्यादाएँ ताक
पर रख आए हैं? क्या वे चाहते हैं कि
मोदी के विरुद्ध कोई आवाज़ न उठाए? यह बहुत ख़तरनाक प्रवृत्ति है, और तानाशाही को जन्म देती है.”
बस उनसे क्षमा माँगते
हुए, मैं उनसे अनुरोध करना चाहता हूँ की कुछ लोगों की मित्रता, जिनका जिक्र
उन्होंने किया है, एवं उनके संस्कारों को वे अपवाद स्वरूप ही लें, बाकी पूरा ढेर
(अंगरेजी में कहते हैं कि लॉट) उन्हें
वैसा ही मिलेगा, जैसा उन्हें अनुभव हुआ है| संस्कार भूलकर बाजरुपण कोई सवाल ही
नहीं है, संस्कार ही बाजरुपण के दिए जाते हैं| मुझे पूरी चर्चा में “इंसान” के दर्शन हुए, मैं कृतज्ञ हूँ, यदि अपना नाम (छद्म भी चल
सकता है) लिखने की परिपाटी जरुरी नहीं होती तो कमेन्ट से पता चलना मुश्किल था कि कमेन्ट
किसी इंसान ने किया है?
मैं आदरणीय शिवेंद्र मोहन
सिंह जी का भी ह्रदय से आभारी हूँ, जिनके सुरुचिपूर्ण और साहित्यिक भाषा में दी
गयी प्रतिक्रिया ने मेरी सहनशीलता को और मजबूत बनाया|
बहरहाल, व्यंग का पूरा
तानाबाना एक छोटे से बिंदु के आसपास बुना जाता है| बहस के केंद्र में रहे व्यंग का
मूल इन पंक्तियों में छिपा है;
“बताया जाता है कि उनके हाथ में एक दूरबीन थी, जिसका प्रयोग करते हुए उन्होंने केवल गुजरातियों को चिन्हित किया और उन्हें ही बचाया| विज्ञप्ति में बताया गया है कि जब ईश्वर को पता चला कि नरेन्द्र ने
केवल गुजरातियों को
बचाया है तो ईश्वर बहुत नाराज हुए और नरेंद्र को याद दिलाया की अब उनका स्तर राष्ट्रीय है और उन्हें संकीर्णवाद से बचना चाहिए|”
उत्तराखंड की त्रासदी के
दो पहलू हैं| पहला यह कि देश में पूर्व में आये सुनामी, भूकंप, तीर्थस्थानों पर
मची भगदड़, की तुलना में यह एक राष्ट्रीय त्रासदी थी की इसमें देश के हर कोने से
आये लोग पीड़ित थे| दूसरा पहलू यह है कि इस त्रासदी की देश स्तर की व्यापकता ने देश
के प्रत्येक व्यक्ति और संस्था (सरकार सहित) का ध्यान इस और से पूरी तरह भटका दिया
कि उत्तराखंड में वहां के निवासी भी हैं और उन्हें भी सहायता और राहत की जरूरत है|
यह काम अब लगभग 13 दिनों के बाद जाकर प्रारंभिक स्तर पर शुरू हुआ है| अब एक
व्यक्ति देश स्तर कि राजनीति में और वो भी आलोचनात्मक राजनीति में हिस्सा लेता है
तो उसकी दूरबीन(सोच) उसी स्तर की होनी चाहिए| कोई भी मानवीय आपदा का प्रबंधन कुछ
मानवीय मूल्यों के आधार पर होता है मतलब उस प्रयास को तटस्थ भाव से, पक्षपात रहित
विचार से, स्वतन्त्र और मानवीय मूल्यों पर किया जाना चाहिए| यह काम बहुत हद तक
अनेक राज्य सरकारों ने किया| इसमें टीडीपी और कांग्रेस के दो नेताओं की लड़ाई भी
बाद में जुड़ गयी| इसमें कोई शक नहीं की मोदी ने अपने प्रचार के लिए बहुत अच्छे
तंत्र को विकसित कर लिया है| पर, उसी तंत्र ने जिस तरह उनके दौरे को प्रचारित
किया, उससे ईश्वर(संघ परिवार) भी उनसे नाराज हुआ और फिर उन्हें तुरंत ही उस मसले
पर बोलना बंद करना पड़ा|
इस सबसे इतर, किसी भी
राज्य सरकार ने किसी को भी बचाने में कोई तीर नहीं मारे हैं| उत्तराखंड जाने का
कोई मार्ग नहीं था और हवाई मार्ग से भी लोगों को तभी बचाया जा सकता था, जब उसके
लिए विशेषज्ञ पायलट हों और ये सिर्फ सेना के पास थे| सभी राज्य सरकार ने केवल इतना
किया कि सेना ने जिन लोगों को आपदाग्रस्त क्षेत्र से निकाल कर लाया, उन्हें अपने
अपने राज्यों में पहुंचाया| मैं इस काम की भी अहमियत को कम नहीं करना चाहता, पर,
उसके लिए स्वयं को स्पाईडरमेन जैसे प्रचारित करवाने की जरुरत नहीं थी|
वैसे भारत में मरे हुए
शेर की पीठ पर पाँव रखकर फोटो खिंचवाने की परंपरा बहुत पुरानी है| जो धर्माचार्य,
संत पूरी आपदा के दौरान गायब थे, अब केदार बाबा की पूजा के लिए छटपटा रहे हैं|
वहां मृत्यु को प्राप्त हुए, बेघरबार हुए लोगों के प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं दिख रही है और न ही वे उसके लिए
चिंतित दिख रहे हैं| मोदी का व्यवहार इससे अलग कहाँ है? उन्होंने भी केदार मंदिर
को बनाने की मंशा जताई| इसमें मनुष्यता कहाँ प्रकट होती है? केदारनाथ और अन्य जगह
के लोगों के लिए घर बनाने या वहां सड़क या पुल बनाने की बात उन्होंने नहीं की| यह
मरे हुए शेर पर पाँव रखकर फोटो खिंचवाने से अलग है क्या?
अब मुझे कोई धर्म समझाने
की कोशिश तो न करे| जिसने किसी भी धर्मशास्त्र का अध्यन नहीं किया है, और ईश्वर
में यदि विश्वास रखता है तो वो भी इतनी बात तो जानता है कि पाप और पापियों दोनों
का नाश करने के लिए ईश्वर को भी मनुष्य का अवतार ही लेना पड़ा और ईश्वर ने ऐसा
मनुष्यता को बचाने के लिए ही किया| अब मनुष्यता को ताक पर रखकर आप किस मंदिर का
निर्माण करेंगे और कौन से ईश्वर की अर्चना करेंगे, ये आप ही बेहतर जानेंगे| यूं और
भी बहुत सी बातें कही जा सकती हैं, पर, अंत मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि जैसे शेर
की खाल ओढ़ लेने से कोई भेड़िया शेर नहीं हो जाता, वैसे ही भेड़ की खाल ओड़ लेने से कोई
भेड़िया भेड़ नहीं हो जाता|
आपदा में मानव जीवन को
जीवित रहने और सुरक्षा के लिए मदद की जरुरत होती है और उसमें मदद पहुंचाते समय
किसी भी प्रकार का भेदभाव मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में ही आयेगा| एक बार
पुनः सभी प्रतिक्रिया देने वाले आदरणीय महानुभावों का साधुवाद और धन्यवाद|
अरुण कान्त
शुक्ला,
29 जून, 2013
Wednesday, June 19, 2013
मोदी का पटेल प्रेम
ये महज एक इत्तेफाक नहीं है कि जब भाजपा का लौह पुरुष कोपभवन में था, गुजरात में मोदी का प्रेम देश के लौह पुरुष सरदार पटेल के लिए उमड़ पड़ रहा था। अपनी पिछली दो पारियों में पटेल को शायद ही कभी याद करने वाले मोदी का प्रेम जब उनकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने वाले कांग्रेस के स्तंभ रहे सरदार पटेल के लिए उमड़े तो इसके पीछे किसी बड़े उद्देश्य या षड्यंत्र के होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
गांधीनगर में 11 जून को पशुधन और डेयरी विकास पर आयोजित सम्मलेन में बोलते हुए मोदी ने कहा की देश को राष्ट्र के रूप में एक
करने वाले इस व्यक्तित्व की यादें क्षीण पड़ती जा रही हैं और लोगों की
यादों में सरदार पटेल को पुनर्जीवित करने के लिये वे सरदार सरोवर बाँध पर
सरदार पटेल की एक लोहे की प्रतिमा स्थापित करेंगे, जो लगभग 392 फुट ऊँची होगी।
स्टेच्यू ऑफ़
यूनीटी के नाम से स्थापित होने वाली सरदार पटेल की ये प्रतिमा न्यूयार्क की स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी से लगभग दूनी ऊँचाई की होगी. इस स्टेच्यू ऑफ़ यूनीटी को स्थापित करने में लगभग 2500 करोड़ रुपये “लोहे” के अतिरिक्त खर्च
होंगे।
प्रतिमा निर्माण
के लिए लोहा कहाँ से आयेगा?
प्रतिमा निर्माण
के लिए लोहे के प्रबंध का वही संघी तरीका मोदी ने अपनाया है जो बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद संघ ने मंदिर निर्माण के नाम पर अपनाया था याने संघ ने मंदिर निर्माण के नाम पर एक घर से एक ईंट माँगी
थी और मोदी मांग रहे हैं, देश के 5 लाख गांवों के किसानों से उनके लोहे के औजारों में से एक औजार. मोदी ने ड्रामाई अंदाज में सम्मलेन में सामने
की कुर्सियों पर बैठे लोगों से पूछा कि आप लोग लोहा देंगे? क्षणिक खामोशी के बाद जबाब आया, देंगे।
मोदी के लिए ये
बात कोई मायने नहीं रखती कि डेयरी और पशुधन विकास के लिए आयोजित उस सम्मलेन में कितने वास्तविक किसान थे, या जो थे भी, वो क्या देश के 5 लाख से ज्यादा गाँवों में रहने वाले किसानों का
प्रतिनिधित्व कर सकते हैं या नहीं?
मोदी के लिए आज जो
बात मायने रखती है, वो यह है कि किस तरह आनन फानन देश के सुदूर ग्रामीण अंचल तक अपनी पहचान पहुंचाई जाये, जोकि भाजपा के राष्ट्रीय चुनाव
प्रचारक बनने के बाद उनके लिए और भी जरुरी हो गया है।
संघ की चाल है
मोदी का पटेल प्रेम
मोदी का पटेल
प्रेम संघ की बिछाई बिसात पर वो दूसरी चाल है, जो संघ ने चली है। संघ की पहली चाल थी, इस तरह जद(यू) से पीछा छुड़ाना कि सभी को लगे कि जद(यू) संघ के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप करते हुए एनडीए
से बाहर जा रहा है. संघ अपनी इस चाल में सफल हो गया है।
यह खेल तब शुरू
हुआ, जब 2010 में कामनवेल्थ घोटाले के फूटने और 2जी घोटालों की खबरें लीक होने के बाद संघ को लगा कि कांग्रेस
की बढ़ती हुई अलोकप्रियता को भाजपा अकेले के दम पर भुना सकती है। वैसे भी एनडीए में भाजपा अकेली राष्ट्रव्यापी पार्टी है. जद(यू) का प्रभाव
बिहार के बाहर कहीं नहीं है। जद(यू) का
धर्मनिरपेक्षता का बिल्ला लगाकर घूमना संघ के हिन्दुत्ववादी एजेंडे की राह का रोड़ा था. इसलिये, मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट करने के लिए उसने 2010 में बिहार को ही चुना ताकि नीतीश कुमार बिदक जायें। और, ठीक वही हुआ भी।
इसके बाद संघ को
सिर्फ गुजरात के चुनावों का इंतज़ार था, जिसमें मोदी का सफल होकर निकलना
पूरी तरह निश्चित था। मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ लेते ही संघ के सामने केवल दो काम रह
गए थे. पहला, पहली रथ यात्रा के बाद हुए दंगों और बाबरी मस्जिद के टूटने
के कलंक को धोने के प्रयास में उग्र हिन्दुत्ववादी एजेंडे से भटके, प्रधानमंत्री बनने की आस लगाए बैठे आडवाणी को हाशिये पर फेंकना और मोदी को विकास पुरुष के नाम से स्थापित करना।
भाजपा की गोवा
कार्यकारिणी बैठक में दोनों काम कर दिए गये। आडवाणी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह जैसे दिग्गजों की नाराजगी को दरकिनार
करते हुए मोदी को न केवल आसन्न चुनावों के लिये भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बना
दिया गया बल्कि भाजपा और संघ का पूरा
प्रचार तंत्र, जो पहले से ही मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा था, और तेजी से मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करने में लग गया. संघ के इशारे पर राम मंदिर का मुद्दा फिर उठाया जाने लगा।
अब दूसरी चाल, पटेल-प्रेम के तहत भाजपा के कार्यकर्ता संघ के स्वयंसेवकों के साथ देश के कोने कोने में स्थित 5 लाख से अधिक गाँवों में सरदार पटेल की तस्वीर लेकर किसानों और लोहारों से लोहा इकठ्ठा करने जायेंगे और बदले में मोदी की फोटो और छाप गाँवों में छोड़कर आयेंगे। याने, संघ की दूसरी चाल के तहत
संघ के स्वयंसेवक और भाजपा के कार्यकर्ता मोदी को, जिनके बारे में अन्य पार्टियों और राजनीतिक विश्लेषकों की राय है
कि वे भाजपा के पोस्टर ब्वाय और मीडिया के टीआरपी ब्वाय हैं, पूरे देश में स्थापित करेंगे।
क्योंकि मृत लोग
बोलते नहीं
सरदार पटेल के लिए
मोदी (संघ) का यह प्रेमभाव इसलिए है कि आज संघ को लगता है कि अपने उग्र हिन्दुत्ववादी एजेंडे को लागू करने के लिए, उसे देश की आजादी के लिए संघर्ष
करने वाले योद्धाओं के साथ खुद को खड़ा दिखाना चाहिये।
मोदी ने गांधीनगर
के सम्मलेन में कहा कि सरदार पटेल ने किसानों को संगठित करने और उनके हकों की लड़ाई को आगे बढाने में महत्वपूर्ण काम किया है. पर, मोदी ने यह नहीं
बताया कि सरदार पटेल जब 1928 में बारदोली में ब्रिटिशों के
द्वारा लगान बढाने और वहां के किसानों की जमीनों को मुंबई के रसूखदारों को जबरदस्ती बेचने के लिए किसानों को मजबूर करने के प्रयासों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, आज की भाजपा की पितृ संस्था हिन्दु महासभा या संघ कोई भी उसमें शामिल नहीं था।
सरदार पटेल लगभग 1917 से लेकर मृत्यु (1950) तक कांग्रेस में रहे और कांग्रेस में रहते
हुए ही उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और अनेक वर्ष अंग्रेजों की जेल में गुजारे। जबकि, उस समय की हिन्दुमहासभा या संघ के किसी भी नेता के आजादी के किसी भी प्रमुख आन्दोलन में हिस्सा लेने का कोई इतिहास नहीं है।
संघ को लेकर सरदार
पटेल के क्या विचार थे, इसे पटेल से बेहतर कौन बता सकता है। सरदार पटेल का 11सितंबर 1948 को आरएसएस प्रमुख
गोलवलकर को लिखे पत्र के अंश पर गौर फरमायें -”हिन्दुओं को संगठित करना और उनकी मदद करना एक बात है किन्तु उनकी तकलीफों के लिये निर्दोष और असहाय स्त्री-पुरूषों और बच्चों से बदला लेना एक दूसरी बात है। इसके अलावा, कांग्रेस के प्रति उनके मन में भयंकर विष भरा हुआ है और वे व्यक्तित्व की गरिमा का विचार किये बगैर, शालीनता और
शिष्टाचार की कोई परवाह नहीं करते हैं, जिससे लोगों में एक प्रकार की
घबराहट पैदा हो गई है. उनके सारे भाषण साम्प्रदायिकता के जहर से भरे हुये है। हिन्दुओं को उत्साहित करने लिये और आत्मरक्षा के
लिये उन्हें संगठित करने हेतु जहर फैलाना जरूरी नही था। इस जहर का आखिरी
परिणाम यह हुआ कि देश को गाँधी जी के अनमोल जीवन के बलिदान की पीड़ा
को भुगतना पड़ा। जब आरएसएस क़े लोगों ने गाँधी जी की मृत्यु के बाद खुशियाँ मनाई और मिठाइयाँ बाँटी इसके बाद सरकार या जनता के मन में अब आरएसएस
क़े प्रति रत्ती भर भी सहानुभूति नही बची। इसके बाद विपक्ष
सचमुच मजबूत तथा कठोर हो गया। इन परिस्थितियों
में आरएसएस क़े विरूद्ध कार्यवाही करना सरकार के लिये अपरिहार्य हो गया था तब से 6 माह से अधिक बीत
गये है। हमें उम्मीद थी कि इतना समय बीत जाने के बाद आरएसएस के लोग पूरी तरह से सोच समझकर सही रास्ते पर आ जायेंगे। किन्तु जो सूचनाएँ
मुझे मिली हैं, उनके अनुसार यह साफ है कि अपनी पुरानी गतिविधियों को नया रूप देने का उनका प्रयास जारी है। ” (आईबिड पेज 26-28)
इसके अलावा सरदार
पटेल द्वारा हिन्दू महासभा के प्रमुख और जानेमाने नेता श्यामाप्राद मुखर्जी को 18 जुलाई 1948 को लिखे पत्र के अंश को भी देखना दिलचस्प है- ”…जहाँ तक आरएसएस और हिन्दू महासभा की बात है, गाँधीजी की हत्या से संबंधित
मामला न्यायालय में विचाराधीन है और मैं इन दोनों संगठनों की इसमें भूमिका के बारे में कुछ भी नही कहना चाहूंगा,किन्तु हमारी सूचनायें यह पुष्टि करती है कि इन दोनों संगठनों की ही
गतिविधियों के फलस्वरूप, विशेषकर आरएसएस ने
देश में ऐसा वातावरण निर्मित किया जिसके कारण यह घृणित हादसा संभव हो सका। मेरे मन में इस बात
के प्रति कोई संदेह नही है कि हिन्दू महासभा
का कट्टरवादी वर्ग इस षड़यंत्र में शामिल था।
आरएसएस क़ी
गतिविधियों ने सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिये स्पष्ट खतरा पैदा कर दिया था. हमारी सूचनायें दर्शाती है कि प्रतिबंध के बावजूद भी आरएसएस क़ी गतिविधियों में कमी नही आई है। वास्तव में समय
बीतने के साथ आरएसएस क़ा दायरा और अधिक विस्तृत हो रहा है और उसकी
विनाशकारी गतिविधियों में लिप्तता तेजी
से बढ़ती जा रही है। ” (सरदार पटेल के चुनिंदा पत्राचार में पत्र क्रमांक 64, 1945-1950, भाग-2, नवजीवन पब्लिशिंग
हाउस, अहमदाबाद, 1977, पेज 276-277)
क्योंकि मृत
व्यक्ति कभी बोलते नहीं हैं, सरदार पटेल कभी भी
ज़िंदा होकर मोदी के प्रेम का भंडाफोड़ करने नहीं आ सकते। लेकिन, वे दस्तावेज अभी भी जिन्दा हैं, जो बताते हैं कि मोदी का सरदार पटेल के लिए प्रेम
देशवासियों को छलने की एक चाल के सिवा कुछ नहीं है। सरदार पटेल की संघ
और हिन्दु महासभा के बारे में ये समझ तब भी थी, जब उन्होंने संघ के ऊपर पहला प्रतिबन्ध लगाया था. यह बात सरदार पटेल के 11 सितम्बर और 18 जुलाई 1948 को लिखे पत्रों से भी जाहिर होती है, जो उन्होंने संघ के तत्कालीन प्रमुख गोलवरकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी को लिखे थे।
प्यार या प्रपंच
इसके बावजूद मोदी
सरदार पटेल को प्यार करने का दावा करते हैं. इसका सीधा अर्थ है कि मोदी या उनकी मातृसंस्था संघ को अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के प्रयास में किसी भी प्रपंच से कोई परहेज नहीं है।
सरदार पटेल इसके
लिए गुजरात में बने बनाए हीरो के समान मोदी को उपलब्ध हैं। संघ या मोदी किसी को भी किसी नए प्रतीक को गढ़ने
की जहमत नहीं उठानी है। कांग्रेस ने, जिसने अपनी आजादी की लड़ाई के इतिहास से खुद किनारा कर लिया है और देशी पूंजी के विकास के लिए अमरीकियों की उंगली थाम कर चल रही है, मोदी के इस काम को और आसान बना दिया है। अब, संघ और मोदी कंपनी को देश के एक अरब लोगों से यही छुपाना है कि सरदार पटेल उनकी संस्थाओं और उनके हिंदुत्ववादी एजेंडे के खिलाफ थे। आज की राजनीति में
ये कोई कठिन काम नहीं है।
अरुण कान्त शुक्ला
19जून,2013
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